कोरोना "भविष्यवाणी" का शिकार हुआ पंजाबकोरोना "भविष्यवाणी" का शिकार हुआ पंजाब

पीजीआई डॉक्टर ने छिपा ली रिपोर्ट, अंजान प्रशासन ने जारी किया रिलीज़

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बेशक पंजाब को इस कोरोना बीमारी से बचाने के लिए कईं कदम बकायदा उठा रहे हैं लेकिन बीते दिन हुई प्रेस वार्ता में ऐसी बात कर बैठे कि पंजाब की जनता सन्न हो गई। उस डर पर तड़का लगा दिया पीजीआई कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ. शंकर परिंजा ने। एक तथाकथित असेस्मेंट रिपोर्ट का जिक्र किया गया। जिसमें मुख्यमंत्री ने पंजाब में 87 फीसदी और भारत के 58 फीसदी लोगों को सितंबर मध्य तक कोरोना हो जाने की आशंका जता दी गई। यह वार्ता फेसबुक पर लाइव थी तो पंजाब के लोग भी देख रहे हैं। नतीजा ये हुआ कि पंजाब से संबंध रखने वाले हमारे जैसे कईं पत्रकारों को कईं फोन आए। कुछ बुजुर्गों के और कुछ कैंसर मरीजों के और कुछ एचआईवी मरीजों के भी। सबका एक सवाल–हम नहीं बचेंगे क्या, हमें सबको इंफेक्शन हो जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री मेडिकल एक्सपर्ट नहीं है और शायद उन्हें मुख्यमंत्री होने के बावजूद मेंटल हैल्थ किस चिडिया का नाम हैं–यह भी नहीं पता। नहीं तो इस तरह के आंकड़े बताने के बाद–वो इसका इलाज भी बकायदा बताते।

खैर, नहीं बताया तो नहीं बताया। लेकिन नाम लिया गया पीजीआई का, एक ऐसा चिकित्सा संस्थान का, जिसे इस रीजन के लोग किसी धार्मिक स्थान से कम नहीं समझते, यहां के डॉक्टरों से इतनी उम्मीद रहती है कि देर सवेर यहां भीड़ लगी ही रहती है। ऐसे में कोरोना जैसी स्थिति में डॉ शंकर परिंजा ने इस असेस्मेंट रिपोर्ट को पंजाब के सीएम के साथ तो सांझा किया लेकिन इन सबमें वह ये भूल गए कि वो पीजीआई में कार्यरत भी हैं और यहां कुछ भी रिसर्च करने के लिए कुछ नियम कायदों को मानना भी होता है। डॉ. शंकर परिंजा ने पंजाब सरकार द्वारा दिए गए कोरोना पॉजीटिव डाटा की मैथमेटिकल गणना की, रिपोर्ट भी बनाई, सीएम को दे भी दी, लेकिन अपने ही इंस्टीट्यूट को बताना जरूरी नहीं समझा, ना रिसर्च रीव्यू कमेटी से अनुमति ली और ना ही पीयर कमेटी को बताया, और तो और अपने ही विभाग के प्रधान को भी बताना जरूरी नहीं समझा। खैर, जल्दी लाइमलाइट में आने की ललक समझ में आती है, लेकिन डॉक्टर साहब अपनी डॉक्टर होने के नाते, पीजीआई के प्रति और समाज के प्रति जिम्मेदारी भूल गए।

कैसे भी आंकड़े सामने आए हों, आईसीएमआर के मुताबिक सच यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग और खुद को क्वारनटाइन करने से यह बीमारी 62 फीसदी कम की जा सकती है।

मामला अब सामने आ चुका था, तो डॉ. शंकर परिंजा रिपोर्ट दबा कर बैठ गए, पीजीआई के अधिकारियों के बार बार फोन करने पर उन्हें यह तक नहीं बताया कि रिपोर्ट उनके द्वारा ही तैयार की गई है।

अलबत्ता पीजीआई ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि उनके किसी भी विभाग या फैकल्टी ने ऐसी कोई भी रिपोर्ट तैयार नहीं की है। नतीजतन मुख्यमंत्री के माध्यम से बाहर आए आंकड़े झूठे साबित होने लगे तो सीएम के मीडिया एडवाइजर ने ट्वीट तक डॉ शंकर परिंजा का नाम बता दिया। इस पर हैरान पीजीआई के प्रधान ने कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख को तलब तो किया ही, साथ में डॉ. शंकर परिंजा को भी बुलाया।

इस पूरी बात को 24 घंटे हो चले हैं, पीजीआई ने अपनी आंतरिक कार्रवाई शुरू कर दी है। पीजीआई प्रमुख डॉ जगत राम ने बताया कि उन्होंने इस मामले में विभाग प्रमुख के साथ साथ डॉ शंकर परिंजा से जवाब मांगा है। लेकिन इन सबके बीच डॉ. शंकर परिंजा को अपनी नैतिक जिम्मेदारी का एहसास नहीं हुआ है। उन्होंने अपनी असेस्मेट रिपोर्ट को लेकर आम लोगों के बीच आकर जानकारी देने की उतनी जल्दबाजी नहीं दिखाई, जितनी जल्दबाज़ी उन्होंने मुख्यमंत्री की आंखों में चमकने की दिखाई थी। उन्हें यह एहसास नहीं हुआ है कि इन आंकड़ों का गलत या गैर समझाए तरीकों से पेश होना, और समझा जाना, इस दौर में किसी की दिमागी सेहत पर कैसा प्रभाव डालेगा। कितने लोगों को घबराहट हो रही होगी। कितने लोग अपने बच्चों को देखकर डर रहे होंगे और कितने बच्चे अपने बुजुर्गों को बचाने के लिए बेचारा महसूस कर रहे होंगे।

By Taruni Gandhi

Taruni Gandhi is an ace writer and journalist with over a decade experience in covering health, social issues. She can be contacted at [email protected].

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