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एम4पीन्यूज, ंचंडीगढ़
अगर पाकिस्तान अपनी चाल में कामयाब होता तो भारत के हिस्से वाले पंजाब का काफी हिस्सा प्यासा रहा जाता। दरअसल, पाकिस्तान ने उस हिस्से में अलग से एक नहर की खुदाई चालू कर दी थी, जहां सतलुज नदी पाकिस्तान के हिस्से से होकर भारत में दाखिल होती है। पाकिस्तान चाहता था कि सतलुज दरिया के पानी को नहर के जरिए सीधे पाकिस्तान तक पहुंच दिया जाए। इसके लिए पाकिस्तान ने अपने हिस्से में सतलुज नदी के किनारे बसे भिखीविंड व कमालपुरा कोहना गांव के आसपास काफी हिस्से में नहर खोद भी दी। यह सब तब हो रहा था, जब पाकिस्तान पानी के विवाद को सुलझाने के लिए 4 मई 1948 को दिल्ली में भारत सरकार के साथ समझौता कर चुका था। भारत ने इस नई नहर की खुदाई पर कड़ा ऐतराज जताया, जिसके बाद पाकिस्तान ने जुलाई 1948 में नहर की खुदाई का काम बंद किया। हालांकि खोदी गई नहर के निशान अभी भी बाकी हैं।
पाकिस्तान की कुटिलता के कारण बना हरीके बांध
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पाकिस्तान की इसी कुटिलता के कारण हरीके पतन पर बांध अस्तित्व में आया। पाकिस्तान की तरफ से अपने हिस्से में सतलुज के बहाव को डायवर्ट करने के इरादे को भांपते हुए अप्रैल 1949 में भारत सरकार ने पंजाब सरकार से बांध बनाने का प्रस्ताव भेजने को कहा। 1950 तक आते-आते तय किया गया कि हरीके बांध योजना के जरिए 7000 क्यूसिक पानी प्रस्तावित फिरोजपुर व सरहिंद फीडर को दिया जाएगा जबकि 18,500 क्यूसिक पानी प्रस्तावित राजस्थान फीडर को दिया जाएगा। इसी योजना के तहत 1952 में हरीके बांध का निर्माण मुकम्मल हो गया। हालांकि राजस्थान नहर का कार्य मार्च 1958 में शुरू किया गया, जो 1966 की गर्मियों में मुकम्मल हुआ। इसके बाद ही हरीके बांध के एक हिस्से में राजस्थान नहर को सप्लाई के लिए गेट लगाए गए और पानी छोड़ा गया।

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