किंवदंती है कि हिमालय की कंदराओं में आज भी एक भ्रूण हत्यारा निरंतर भटक रहा है । इसके माथे के घाव से निरंतर मवाद रिसता है;! यह है ! महाभारत युग का पुरोधा – अश्वत्थामा, जो आज भी भ्रूण हत्या का श्राप भोग रहा है. आज भी कई अश्वत्थामा सरेआम कई नवजातों को जन्म लेने से पहले ही मौत कि नींद सुला रहे हैं। यकीन माने तब तो भगवन कृष्ण ने भ्रूण हत्यारे को श्राप दिया था, तब सतयुग था ! तो इतनी भयानक सजा थी आज कलयुग है, हत्यारे अपने अंजाम ख़ुद सोच सकते हैं।
कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि का अन्तिम रात्रि ! खून से लथपथ दुर्योधन हार की पीड़ा से कराह रहा था ! तभी अश्वत्थामा , कृतवर्मा और कृपाचार्य आ आते हैं । दुर्योधन अपने खून से अश्वत्थामा को तिलक कर सेनापति नियुक्त कर मांग करता है कि उसे पांडवों के शीश ला कर दो । अश्वत्थामा घोर दुविधा में फँस गया। दुर्योधन उसे अपनी मित्रता का वास्ता देकर पांडवों के सर्वनाश की कामना करता है। तभी उसने देखा कि एक उल्लू सो रहे पक्षियों का शिकार कर रहा है। अश्वत्थामा ने सोते हुए पांडवों के वध की योजना बनाई और पांडवों के शिविर पर हमला बोल दिया । भ्रम वश द्रोपदी के पाँच पुत्तरों को मार डाला । पांडवों के शिविर में हाहाकार मच गया । हाथ में महा शक्ति वज्र लिए अगली प्रात वह फिर से पांडवों के सर्वनाश के लिए पहुंच गया । वहा पर उपस्थित महाऋषि वेदव्यास ने अश्वत्थामा को विनाशकारी वज्र शक्ति को तुरंत रोकने के आदेश दिए।
अश्वस्थामा की दृष्टि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा पर पड़ी, उत्तरा की उन्नत कोख देख वह समझ गया कि पांडवों का उत्तराधिकारी उत्तरा के उदर में है उसने शक्ति उत्तरा की कुक्षी यानी कोख की ओर फ़ेंक दी और गर्भवती उत्तरा मूर्छित हो कर गिर पड़ी । अश्वत्थामा के इस घृणित कृत्य की सभी ने घोर निंदा की । भगवान् कृष्ण ने उसे श्राप दिया और कहा कि इसने वह पाप किया है जो इसे ही नहीं इसकी कीर्ति को भी नष्ट कर चुका है । इस कायर को इतिहास एक महान योधा नहीं, मात्र सोते हुए लोगों के निर्मम हत्यारे तथा भ्रूण हत्या के अपराधी के रूप में चित्रित करेगा । भगवान् ने अर्जुन से उसके माथे पर दमक रही मणि को निकाल लेने को कहा ! उत्तरा की कुक्षि में पल रहे परीक्षित को भगवान् ने जीवित कर दिया।
भगवान ने अशव्स्थामा को भ्रूण हत्या के दोष में ऐसा श्राप दिया जिसकी तुलना विश्व के किसी भी दंड से नहीं की जा सकती। भगवान् श्री कृष्ण ने घोषणा की कि इसके माथे का यह घाव कभी नहीं भरेगा और यह घाव निरंतर ‘रिसता’ रहेगा। इस दुष्ट को मृत्यु भी नहीं मिलेगी ! कहते हैं कि अशव्स्थामा आज भी अपने घाव और उसमें से रिसते मवाद के साथ हिमालय की कंदराओं में भटक रहा है !