एम4पीन्यूज| चंडीगढ़
-नॉट इन माई नेम। इन दिनों दिल्ली से लेकर मुंबई तक यह आंदोलन सुर्खियां बना हुआ है लेकिन नॉट इन माई नेम कोई नया नाम नहीं है। यूं भी कहा जा सकता है कि यह पूरी तरह विदेशी से देसी हुआ आंदोलन है।
दरअसल, नॉट इन माई नेम आंदोलन का आगाज 2014 में इंगलैंड के एक ग्रुप एक्टिव चेंज फाउंडेशन ने तब किया था, जब सीरिया में इंगलैंड के नागरिक डेविड हैंस की इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। तब फाउंडेशन के बैनर तले कुछ मुस्लिम युवाओं ने इस घातक हिंसा के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए वीडियो जारी करते हुए कहा था नॉट इन माई नेम। इस वीडियो पर दुनिया भर में प्रतिक्रिया आई थी।
भारत में आंदोलन की देसी रंगत
अब भारत में इसी आंदोलन को नई रंगत देकर परोसा जा रहा है। इस आंदोलन का आगाज करने वालों का कहना है कि देश भर में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती हुई घातक हिंसा के खिलाफ हम सारे नागरिक विरोध प्रदर्शन के लिए इकठ्ठा होंगें। हाल ही में सोलह वर्षीय जुनैद के साथ जो दिल्ली से चली ट्रैन में 23 जून 2017 को हुआ, वो एक लम्बी और भयानक श्रंखला का हिस्सा है। मुसलमानों पर हो रहे ये हमले एक ऐसे प्रवृत्ति का हिस्सा हैं जिसमें देशभर में दलितों, आदिवासियों और अन्य वंचित और अल्पसंख्यक समूहों पर हो रही हिंसा भी शामिल हैं।
इन सभी घृणित अपराधों के दौरान सरकार ने लगातार बस एक निंदनीय चुप्पी बनाए रखी है। सरकार की इस चुप्पी को आम भारतीयों की स्वीकृति के रूप में नहीं पढ़ा जाना चाहिए। इस देश के नागरिकों के रूप में, हम एकजुट होंगें, और कविता और संगीत के माध्यम से, यह स्पष्ट करेंगे की इन बढ़ती हुई हत्यायों और उसके पीछे की सांप्रदायिक विचारधारा का हम सरासर विरोध करते हैं। इस नफरत के खिलाफ हम सब की आवाज बुलंद है। अगर अब नहीं तो फिर कब? आखिर जीवन और समानता का अधिकार भारत के संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है। अब समय आ गया है की हम भारत के नागरिक अपने संविधान की रक्षा करें।