कसम से इससे खूबसूरत "साइकिल की कहानी" कहीं नहीं पढ़ी होगी आपनेकसम से इससे खूबसूरत "साइकिल की कहानी" कहीं नहीं पढ़ी होगी आपने
ब्लॉगरः एल आर गांधी 

70 सावन बीत गए
कल की सी बात लगती है ! दो भाई तीन बहनें और एक ट्राइसिकल
छोटा पीछे बैठ जाता और हम चलाते ! मोहल्ले के अन्य बालक बड़ी हैरत की नज़र से निहारते थे।
जिस दिन छोटा अपने पांव चलने लगा उसी दिन से मालिक बन गया। गद्दी पर अड़ कर बैठ जाता ,पैडल अभी मारना नहीं आया था। फिर भी ! उस तीन पहियों वाली के लिए न मालुम कितनी लड़ाइयां हुई दोनों में ! छोटे ने पैडल मारना क्या सीखा, हमारा तो पत्ता ही कट गया। बेचारी बहनो की तो क्या बिसात जो उसे ‘छू’ भी लें।
छोटे का जन्म दिन मनाया तो वह भी साइकल पर बैठ कर। बड़ा होने का क्या नफा-नुक्सान है कोई हम से पूछे।
गर्मियों की छुट्टियों में हम अपने नानके गए और बुआ जी और उनका बेटा हमारे यहाँ पधारे। बेटे ने साइकल देखी और ज़िद पकड़ ली और उसकी नानी माँ और हमारी दादी माँ ने तीन पहिये वाली उनके साथ ही विदा कर दी !  जब हमें मालुम हुआ तो हम बहुत रोए !
घर में  हरकुलीज़ की एक ही बाइसिकल थी, बेचारी को एक पल भी सांस लेने को नहीं मिलता था। जो भी आता ले उड़ता !
मैं चाचू से पूछता रहता, साइकिल का पुराना टायर कब बदलवाओगे।
आखिर वह दिन भी आ गया, किसी दिवाली से कम न था तब साइकिल का टायर हम गली गली टिपरी के डंडे से हांकते फिरते!
वह दिन भी आया जब हमने खानदानी हरकियूलीज़ की कैंची नुमा राइडिंग का लुत्फ़ उठाया। गिरे भी चोट भी लगी ! मगर घर पर किसी को नहीं बताया। रात भर ज़ख़्म सहलाते रहे, बताते तो खूब मार पड़ती और साइकिल राइडिंग पर बैन लग जाता !
हमने अपने बच्चों को ऐसे ज़ख्म छुपाने या सहलाने की नौबत कभी नहीं आने दी ! ईद की माफिक उत्सव मनाया था हमने ,जब ईश्वर ने हमें एक फूल सी परी से नवाज़ा ! बिन मांगे वह हरेक चीज़ ला कर दी, जिससे हम बचपन में तरसते रहे।
कालेज में दाखिले पर चुपके से जब एक स्कूटी उसे मिली तो वह बहुत खुश थी। मेरी आँखों के आगे अपना पहला ट्राइसिकल घूम रहा था।
हमारे वक्त में शहर में स्कूटर गाहे बगाहे ही नज़र आता था, बस साइकल ही एक शाही सवारी थी।
एक रिश्तेदार की शादी में ‘साइकिल मिल गया, आगे साहिब को चलाना आता नहीं था । हररोज़ साइकिल को पैदल धकेल कर दूकान पर जनाब ले जाते और ऐसे ही धकेल कर ले आते। कहीं पीछे से कोई और न चला ले।
जमाना बदल गया साइकलों का स्थान स्कूटरों व् कारों ने ले लिया। साइकलों के कारखाने तो महज़ बच्चो के साइकिल निर्माण पर जिन्दा हैं।  नाति ने जब साइकल की डिमांड की तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था, मगर सिर्फ लेने का शौक था जनाब को , सीखने का नहीं। एक दिन छोटे नाति ने उसे साइकिल चलाना सिखाया तो हमने उसे ‘साबास’ दी, तो जनाब झट से बोले, नानू हरसिमरत के पास पांच 5 गियर का साइकिल है।
साइकिल वाले के पास ले गए, 5 गियर का साइकिल उस पर दो-दो लाईट, एक घंटी,कैरियर और पानी की बोतल का स्टैंड लगवाया। मेरे पैर जमीं पर नहीं थे।
अब कोई हसरत अधूरी नहीं रही

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