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25-03-2025 Vol 19

पंजाब में संरक्षित स्मारकों के आसपास ऊंचे निर्माण पर सख्ती

श्री फतेहगढ़ साहिब के संघोल में प्राचीन स्थल एवं बौद्ध स्तूप सहित जालंधर के नकोदर शहर में दो मकबरे जैसी धरोहर को लेकर हैरीटेज बायलॉज की नोटिफिकेशन जारी

चंडीगढ़ :

पंजाब में अब संरक्षित स्मारकों के आसपास ऊंचे निर्माणकार्य कर पाना मुश्किल होगा। केंद्र सरकार ने पंजाब के संरक्षित स्मारकों को लेकर हैरीटेज बायलॉज लागू करने की पहल कर दी है। श्री फतेहगढ़ साहिब के संघोल में प्राचीन स्थल एवं बौद्ध स्तूप सहित जालंधर के नकोदर शहर में दो मकबरे जैसी धरोहर को लेकर हैरीटेज बायलॉज की नोटिफिकेशन जारी की गई है।
नोटिफिकेशन के लागू होने से संरक्षित स्मारक के वर्जित क्षेत्र यानी प्रोहिबिटिड एरिया में किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं होगी। वहीं, रैग्यूलेटेड एरिया यानी नियंत्रित क्षेत्र में पंजाब सरकार द्वारा घोषित मास्टर प्लान और पंजाब म्युंसिपल बिल्डिंग उपनियम-2018 के तहत जो नियम परिभाषित किए गए हैं, वह सभी स्मारक के विनियमित क्षेत्र पर लागू होंगे।

नकोदर स्मारक के रैग्यूलेटेड एरिया में नए निर्माण की ऊंचाई 15 मीटर से अधिक नहीं होगी
नकोदर के दो मकबरे के आसपास नियंत्रित एरिया में किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करने की कोशिश की गई है। इसके तहत नए निर्माण या मौजूदा इमारतों में परिवर्तन के लिए अधिकत्तम ऊंचाई सीमा अब 15 मीटर निर्धारित की गई है। इससे अधिक ऊंचाई के निर्माण प्रतिबंधित होंगे। वहीं, तलघर के निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी। स्मारक के महत्व को ध्यान में रखते हुए रैग्यूलेटेड एरिया में नए निर्माण का अगले हिस्से में भडक़ीले रंगों का प्रयोग वर्जित रखा गया है ताकि यह स्मारक पर हावी न हों। इसी तरह, छत सपाट रखनी होगी। निर्माण सामग्री में सिंथेटिक टाइल्स, कांच को बाहरी हिस्से में प्रयोग वर्जित रखा गया है। स्मारक स्थल को बेहतर बनाने भी सिफारिशें की गई हैं, जिसमें प्रवेश द्वार की आसान पहचान के लिए उचित संकेतक लगाए जा सकते हैं लेकिन इसके निकट होर्डिंग्स, बिलबोर्ड और पोस्टर या किसी प्रकार के विज्ञापन की अनुमति नहीं होगी।

संघोल में अधिकत्तम ऊंचाई सीमा 7.50 मीटर होगी
संघोल स्मारक के आसपास नियंत्रित क्षेत्र में भी कई तरह के नियम कानून लागू किए गए हैं। नियंत्रित क्षेत्र में 7.50 मीटर की ऊंचाई का नए निर्माण या मौजूदा इमारत की छत पर ऊंचाई वाला निर्माण नहीं किया जा सकेगा। स्मारक की संरचनात्मक सुरक्षा पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए बेसमेंट के निर्माण की अनुमति नहीं होगी। और तो और स्मारक की सीमा के साथ पार्किंग को भी हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई है। स्मारक के आसपास शहरीकरण व जनसंख्या दबाव को लेकर भी चिंता जताई गई है। लुधियाना-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग और फतेहगढ़ साहिब रेलवे स्टेशन से स्मारक की निकटता के कारण इसपर संभावित विकासात्मक दबाव पडऩे की संभावना है। खासतौर पर अनियोजित विकास, बुनियादी ढांचा परियोजनाएं व आसपास के क्षेत्रों में भूमि उपयोग में परिवर्तन स्मारक की दृश्य और भौतिक अखंडता के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। चूंकि इस क्षेत्र के लिए अभी कोई मास्टर प्लान तैयार नहीं किया गया है, इसलिए यह भी सिफारिश की गई है कि मास्टर प्लान तैयार होने पर उसमें राष्ट्रीय महत्व के सभी संरक्षित स्मारक और इन स्मारकों के आसपास वर्जित व नियंत्रित क्षेत्र को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए।

संघोल के 7 टीले, नक्काशीदार पत्थरों के स्लैब का खजाना मिलने से मिली प्रमुखता
संघोल में 1968-90 के बीच खुदाई की गई थी। यहां 7 टीलें हैं, जिनमें एसजीएल 5, एसजीएल 11 और हाथीवाड़ा महत्वपूर्ण टीलें हैं, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है। 1985 में 117 खूबसूरत नक्काशीदार पत्थर के स्लैब के खजाने की अचानक खोज के साथ इस स्थल को प्रमुखता मिली, जिसमें 69 सीधे खंभे, 35 क्रॉसबर और 13 कोपिंग पत्थर शामिल थे, जो पहली-दूसरी शताब्दी के मथुरा कला विद्यालय से संबंधित हैं। एसजीएल-5 टीले नामक एक शिखरीय टीले पर किए गए उत्खनन से एक बौद्ध स्तूप की धर्म-चक्र पैटर्न योजना के साथ-साथ दीवार और कई अन्य संरचनाओं का पता चला। हाथीवाड़ा टीले पर एक बड़ी संरचना की पहचान कुषाण काल के महलनुमा अवशेष के रूप में हुई।

हिंदू कम्बोह का शहर नकोदर, उस्तादों के पार्थिव शरीर पर बने मकबरे
नकोदर में उस्ताद और शागिर्द का मकबरा संरक्षित स्मारक है। यह मकबरा मुहम्मद मोमिन और हाजी जमाल का है। वैसे नकोदर के बारे में कहा जाता है कि यह ऐतहासिक शहर हिन्दू कम्बोह ने बसाया था। आइन-ए-अकबरी में उल्लेख है कि इस शहर पर मंज यानी राजपूतों ने कब्जा कर लिया था, जिन्होंने इसे अपने क्षेत्र का एक उपविभाग बनाया था। सिख काल के दौरान सरदार तारा सिंह ने इसपर कब्जा करके किला बनवाया। 1570 में नवाब कुतुब खान के आगमन के साथ शहर का अधिपत्य कम्बोह जनजाति के खानजादों को सौंप दिया गया, जो नूह के पास इंदौर में एक सोना के साथ आया था।

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