Monday

03-02-2025 Vol 19

आंतरिक कस्तूरी को ढूंढने में मददगार है जिन ढूँढा तिन पाइयाँ

ओम प्रकाश सिंह, ओएसडी हरियाणा सीएम की पुस्तक सीएम मनोहर लाल खट्टर ने किया विमोचन

एम4पीन्यूज चंडीगढ़

“जंगल जंगल ढूंढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को, कितना मुशिकल है तय करना खुद से खुद की दूरी को”


हिंदी ग़ज़लकार विजय कुमार सिंघल की ग़ज़ल।

ये लाइने आपने सुनी होंगी, काफी गहरा अर्थ है इसका, क्योंकि सबसे लंबी दूरी तो खुद से खुद की होती है और सफर भी खुद से खुद तक का ही होता है, वो भी बेइंतेहां मुशिकल। उम्र बीत जाती है इतनी सी बात समझने में लेकिन अब एक लेखक ने कुछ इस तरह इस पसोपेश को शब्द दिए हैं कि खुद से खुद की इस दूरी को तय करना काफी हद तक आसान हो जाएगा।

पेशे से अफसर “ब्यूरोक्रेट”, इन औहदों पर विराजमान लोगों से इतनी सरलता की अपेक्षा करना थोड़ा मुशिकल है लेकिन नामुमकिन नहीं। कुछ इस तरह के ही चरित्र को चरितार्थ करते हैं ओम प्रकाश सिंह। बेशक सीएम के कार्यालय में कार्यरत हैं, बेशक काफी व्यस्त हैं लेकिन जिस तरह किताब को सरल शब्दों में बांध कर जीवन की कठिनाइयों को निर्मल नदी सा विवरण किया है वैसा सालों से इस लेखन बाज़ार में बैठे लेखकों से न हो।

किताब बहुत किस्सों, कहानियों और सच्चे अनुभवों पर आधारित है। जब इस किताब पढ़ने के लिए उठाया तो तीन घंटे तक इस किताब ने इस तरह बांधे रखा जैसे जिंदगी ने आकर खुद को समझने का निमंत्रण दे दिया हो। कुछ इस तरह की दिमागी अटकलों को खोला, जिनसे छुटकारा पाने के लिए आंतरिक मन न जाने कब से जद्दोजहद कर रहा था।

समागम में भी ओम प्रकाश सिंह ने कुछ इस तरह के किस्सों से समां बांधा कि जिससे एक बात तो साफ हो गई कि भाषा किसी का व्यक्तित्व व उसका विवेक तय नहीं करती, अनुभव करते हैं।

इस खूबसूरत किताब के लिए पांच सितारे देने तो बनते हैं।

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