बाहुबली से इतिहास से निकली कईं कहानियों का है संगम
एम4पीन्यूज|चंडीगढ़
जल्द ही बाहुबली-2 बड़े पर्दे पर आने वाली है लेकिन बाहुबली के पहले भाग की रिलीज के बाद से ही कई ऐसे राज हैं, जिन्हें जानने के लिए दर्शक उतावले हैं। खासतौर पर कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा, का जवाब हर दर्शक के मन में उमड़ रहा है। खैर इसके अलावा भी कई राज हैं, जिन्हें लेकर दर्शकों में कौतुहल है। इनमें से ही एक है माहिष्मति राज्य। माहिष्मति राज्य का सच क्या है। बेशक माहिष्मति नरेश के बेहद बलशाली होने की वजह से उन्हें बाहुबली की संज्ञा दी गई हो, ऐसा माना जा सकता है लेकिन माहिष्मति राज्य के बारे में अनुमान लगा पाना वाकई माथापच्ची का सबब है। माहिष्मति राज्य की कहानी पौराणिक ग्रंथों से जुड़ी हुई है, खासतौर पर महाभारत के। उसी का एक हिस्सा हम भी आपसे शेयर कर रहे हैं…..
‘बाहुबली’ के पुरखे गए थे महारानी कुन्ती के स्वयंर में
बाहुबली फिल्म में बहुत कुछ कोरी-कल्पना हो सकता है लेकिन माहिष्मति राज्य की कहानी कोरी-करारी सच्ची व सटीक है। महाभारत में इस राज्य का कई जगह वर्णन मिलता है। राजा कुन्तीभोज ने जब अपनी गोद ली पुत्री कुन्ती का स्वयंवर रचाया था, तब माहिष्मति नरेश उस स्वयंर में आसानी थे लेकिन कुन्ती ने इस स्वयंर में महाराज पाण्डू को वरमाला पहनाई। महाभारत युद्ध के समय माहिष्मति में राजा नील का शासन था। राजा नील महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
महाष्मिति नर्मदा नदी के तट पर स्थित था, जो आज मध्यप्रदेश के खरगौन जिले में महेश्वर के नाम से नर्मदा के तट पर स्थित है। माहिष्मति के बारे में माना जाता है कि यह हैहयवंशी राज्य की राजधानी था। हैहयवंशी राजा महिष्मन्त ने ही नर्मदा के किनारे महिष्मति नगर बसाया था। इन्हीं के कुल में आगे चलकर राजा कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र कृतवीर्य ने माहिष्मति का सिंहासन संभाला। भार्गव वंशी ब्राह्मण इनके राजपुरोति थे। भार्गव प्रमुख व भगवान परशुराम के पिता जमदिग्न ऋषि से कृतवीर्य के अच्छे संबंध थे। कृतवीर्य के पुत्र का नाम अर्जुन था, जिसे कात्र्तवीर्यार्जुन भी कहा जाता था। कात्र्तवीर्याजुन ने अपनी आराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया और उनसे हजार हाथों के बल का वरदान मांगा। इसी कारण कात्र्तवीर्यार्जुन को सहस्त्रार्जुन व सहस्त्रबाहु भी कहा जाने लगा।
शक्ति के नशे में चूर सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब भगवान परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाएँ कट गईं और वह मारा गया।
तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया-मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूँगा। परशुराम ने पूरे वेग से माहिष्मति नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियों से युद्ध किया।
अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे। इस तरह हैहयवंशियों की भावी पीढ़ी को भगवान परशुराम के कोप से मुक्ति मिली।
बाहुबली का वाइल्ड लाइफ ऐंगल, बिफरे भैंसे की कहानी
बाहुबली फिल्म में राजा भल्लालदेव के साथ बिफरे हुए भैंसे की लड़ाई लाजवाब है। फिल्म निर्देशक एस.एस. राजामौली ने इस भैंसे को पौराणिक काल व मौजूदा समय के साथ बहुत बाखूबी पिरोया है। पौराणिक काल की बात करें तो इस भैंसे का माहिष्मति राज्य से गहरा कनैक्शन है।
संस्कृत में माहिष शब्द का पर्याय भैंसा है तो स्वाभाविक है माहिष्मति का राजा माहिष विजयी ही होगा। इसीलिए भल्लालदेव को भैंसे पर प्रहार करके चित करते हुए फिल्म में दिखाया गया है। माहिष शब्द से ही एक असुर का नाम माहिषासुर पड़ा था। माहिषासुर अपनी इच्छानुसार जब चाहे भैंसे व जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। खैर बाहुबली फिल्म वाला भैंसा असल में इंडियन बाइसन यानी गौर है। इंडियन बाइसन दक्षिण एशिया में पाया जाना वाला पशु है। यह आज लुप्त होने की कगार पर हैं, फिर भी इसकी सबसे ज्यादा आबादी भारत में ही पाई जाती है। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क व कान्हा नेशनल पार्क में इनका संरक्षण किया जा रहा है। माहिष्मति राज्य भी मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के किनारे बसा नगर था, तो जाहिर है कि पौराणिक काल में माहिष यानी इंडियन बाइसन यहां सामान्य तौर पर पाए जाते होंगे। इसीलिए फिल्म निर्माता ने इंडियन बाइसन को अहमियत दी और युद्ध के सीन का फिल्मांकन किया।